यूं ही कोई मिल गया था.. - 1 Neerja Pandey द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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यूं ही कोई मिल गया था.. - 1

भाग 1

भाई विशाल की बारात में खुशी से झूमते विहान के पांव थम से गए जब उसकी निगाह भाभी के साथ आती लड़की पर पड़ी । आस पास से बेखबर निशा का पूरा ध्यान अपनी दुल्हन बनी दीदी संध्या पर ही था। उसे संभालते हुए स्टेज तक ले आई। पीले रंग का लहंगा उसके पीत रंग में जैसे घुल मिल सा गया था। उसके बाद शादी के सारे कार्यक्रम खुशी खुशी निपटे, निशा परछाई की भांति दीदी के साथ थी । उसे हर पल जब तक दीदी है उसके साथ ही रहना था। उसके सोच का केंद्र बिंदु निशा पर ही सिमट गया था। विहान को तो जैसे होश ही नहीं था। मंत्र मुग्ध सा वो भी बस हर पल भाई के साथ ही था । विहान ने भाई से पूछा तो पता चला वो उसकी भाभी की छोटी बहन है ।

विहान बीए द्वितीय वर्ष का छात्र था। उसका कॉलेज भी भाई के ससुराल से दो किलोमीटर की दूरी पर था। विशाल जल निगम में इंजीनियर था। भाभी के अधिकारी पिताजी विभूति जी ने उसके ग्रामीण मध्यम वर्गीय परिवार में बेटी देना सिर्फ विशाल की मलाईदार ओहदे को देख कर स्वीकार किया था। विभूति जी और विशाल के परिवार के रहन सहन में जमीन आसमान का अंतर था। विभूति जी के घर में जहां सब कुछ हाई सोसायटी का था। वही विशाल के घर ग्रामीण परिवेश का था। जहां सुविधाएं नगण्य थी। पर वो जानते थे कि लड़का अच्छे ओहदे पर है । सब कुछ कर लेगा। वो दे तो खुद भी बहुत सकते थे। पर उन्हे अपने पद के अनुरूप अफसर दामाद चाहिए था।लड़की वालों की लंबी कतार में, सोच से ज्यादा दहेज विशाल के पिताजी को देकर प्रथम स्थान बना लिया। इतना ज्यादा दहेज दिया की विशाल का परिवार कृतज्ञ हो गया।

विभूति बाबू ने अपने शहर में ही विशाल का ट्रांसफर करवा लिया। उसे एक छोटा मगर सुविधा युक्त बंगला भी दे दिया। वो खुश थे की एक बेटी का घर उनकी इच्छा अनुसार बस गया।

विहान जो हॉस्टल में रहता था। अक्सर अब भाई के घर आने लगा। भाभी का स्वभाव तो अच्छा था। पर वो ज्यादा खुल के उनके साथ नही रह पता था। दूसरे विभूति जी बातो बातो में ही उसे समझा चुके थे की उसका हॉस्टल में ही रहना उपयुक्त है। अपबत्ता विशाल चाहता था की जब घर है तो उसे हॉस्टल में रहने की क्या जरूरत है?

विहान वैसे तो शायद ना भी जाता भाई के घर पर निशा का सम्मोहन उसे खींच लाता। दीदी की लाडली होने की वजह से वो अक्सर आती रहती । निशा का कॉलेज तो अलग था। पर सब्जेक्ट और ईयर एक ही था। विहान कुशाग्र बुद्धि था। दोनो साल उसके अच्छे नंबर आए थे।निशा ने विहान से उसके नोट्स मांगे तो बिना खुद की परवाह किए की उसे भी पढ़ना है,उसने निशा को दे दिया। विहान से पहले तो वो दूर ही रहती थी पर कुछ समय बाद विहान का जिंदादिल स्वभाव उसे भी आकृष्ट करने लगा। विहान तो पहले से ही फिदा था उस पर। विहान गाता बहुत अच्छा था। जब भी निशा को देखकर गाता, चांद सी महबूबा हो मेरी कब... निशा मुस्कुरा देती। साथ ही छेड़ती ,"मै चांद सी नही हूं ना...? जाओ चांद सी हीं ढूंढ लो।"बनावटी नाराजगी जताती निशा।

तुरंत ही विहान माफी मांग ने लगता , "मेरा वो मतलब नही था... मैं तो...

ये कह रहा था,तुम बिलकुल मेरी साकार कल्पना हो।"

विभूति जी आजाद ख्याल थे । वो अपनी दोनो बेटियो को अपने बेटों से कम नही समझते थे। जैसे उनके बेटे कहीं भी आने जाने को आजाद थे वैसे ही बेटियो पर भी कोई पाबंदी नहीं थी। दीदी के घर के अलावा वो बाहर भी मिलने लगे। कभी कंपनी गार्डन में तो कभी गंगा के घाटों पर हाथ में हाथ डाले घंटो घूमते।

निशा और विहान को पूरा यकीन था की दोनो के घरों में इस रिश्ते की मंजूरी मिल जायेगी। विहान की मां तो कई बार कह भी चुकी थी की दोनो बहुएं एक घर की रहेगी तो आपस में ताल मेल अच्छा रहेगा।

विभूति जी इन सब से अनभिज्ञ थे। उनकी रुचि बस अपनी सहबी में ही थी। घर और बच्चो की देख रेख उन्होंने पत्नी कमला पर सौप खुद को इन सबसे अलग ही रखा था।

निशा और विहान हर दिन हर पल साथ रहना चाहते। निशा तो अपनी पढ़ाई घर लौटने के बाद देर रात तक जाग कर लेती । पर विहान लापरवाह होता जा रहा था अपनी पढ़ाई के प्रति। समय बीतता जा रहा था। फाइनल ईयर की परीक्षाएं सर पर आ गई। विहान ने अपने सारे नोट्स निशा को दे दिए थे। निशा को वापस करने से मना कर दिया की मैने ही तो बनाया था, दूसरा बना लूंगा। पर आज कल करते करते समय बीत गया। परीक्षाएं सर पर आ गई । पर उसके नोट्स नही तैयार हो पाए । निशा से वापस मांग कर वो खुद को छोटा नही साबित करना चाहता था।

परिणाम स्वरूप वो इतना घबरा गया कि जल्दी बाजी में नोट्स बनाने में कई गलतियां कर गया। परीक्षाएं शुरू हो गई। विहान का पहला पेपर खराब हो गया। इस तनाव में वो जब दूसरे पेपर की तैयारी करने बैठा तो मन एकाग्र ना कर सका। दिल में एक घबराहट सी थी कि दूसरा पेपर भी खराब ही होगा। किसी तरह मन को एकाग्र किया और दूसरा पेपर दिया। राम राम करके परीक्षा खत्म हुई। पर उसका मन बुझ गया था।

ये उदासी ज्यादा समय नहीं रह पाई। जैसे ही भाई के घर निशा से मुलाकात हुई ,उसने कहा की उसके पेपर बहुत अच्छे हुए है। और श्रेय जाता है विहान के नोट्स को तो उसकी सारी उदासी उड़ान छू हो गई। निशा की खुशी में ही वो खुद की खुशी समझने लगा। निशा के पेपर अच्छे होने की खुशी में वो अपने पेपर खराब होने का गम भूल गया।

दो महीने बाद रिजल्ट आया । जैसा कि उम्मीद थी भी हुआ। किसी तरह लुढ़कते लुढ़कते बचा था विहान । थर्ड डिविजन में पास हुआ था। पर निशा के अच्छे नंबर आए थे। वो फर्स्ट डिवीजन में पास हुई थी। विहान को अपने कम नंबर का अफसोस जरूर था, पर निशा के अच्छे नंबर से बहुत खुश था।